लेखनी प्रतियोगिता -22-Sep-2022... सयुंक्त परिवार..
चिड़िया होतीं हैं बेटियां...
पर पंख नहीं होते इनके.. ।
मायका कहता हैं तुझे पराए घर जाना हैं..
ससुराल कहता हैं तु पराए घर से आई हैं..।
अब तु ही बता ए खुदा..
बेटियां किस घर के लिए बनाई हैं..।।
कहने को तो हर लड़की के दो परिवार होतें हैं...। दो खानदानो की आन बान और शान होतीं हैं..। लेकिन आज कल अगर देखा जाए तो इस बदलते दौर में हर कोई परिवार का महत्व खोता जा रहा हैं.. । हमारी सोच... जो किसी समय में सयुंक्त परिवार को इतनी तवज्जो देतीं थीं... आज उससे कोसों दूर होतीं जा रहीं है...। आधुनिकता का ऐसा रंग चढ़ा हुआ हैं की अपनों से ज्यादा हम गैरों पर भरोसा करने लगे हैं...।
ऊपर लिखी पंक्तियों से आज हर लड़की दूर होतीं जा रहीं हैं...। शादी के बाद भी मायके वालों को ना छोड़ना और ससुराल के नाम पर सिर्फ पति और बच्चे....।
लेकिन सच तो ये हैं की जो बात सयुंक्त परिवार में रहने की थीं... उसकी बात ही कुछ ओर थीं...।
मैं अगर मेरी बात करूँ तो शादी से पहले हम पैंतालीस लोग एक ही छत के नीचे रहते थे... एकही घर में..। दादा.... बड़े चाचा... मंझले चाचा.. छोटे चाचा... और हमारे पापा.... सबका परिवार.. एक साथ.. । हम लोग आपस में तेरह तो सिर्फ बहनें थीं...। हमें कभी किसी दोस्त की जरूरत ही महसूस नहीं होतीं थीं...। दिन की शुरुआत कब होतीं थीं और कब दिन ढल जाता था... आपस में बातें करते...खेलते कुदते... मस्ती मजाक करते... पता ही नहीं चलता था....। ना उस समय में कोई मोबाइल होता था... ना कोई सैर सपाटे के लिए दूसरे देशों और शहरों में जाने का चलन... टीवी थीं वो भी शट्टृर वाली ब्लैक एंड व्हाइट....और वो भी देखने मिलतीं थीं सिर्फ रविवार को.. रंगोली और रामायण...।
आज भले ही हम लोगो ने बहुत तरक्की कर ली हैं... लेकिन जो सुकून उस वक्त मिलता था.. आज वो सुकून कहीं भी नहीं हैं...। मनोरंजन के बहुत से साधन है आज हमारे पास... लेकिन साथ बैठने वाला परिवार नहीं हैं...।
मेरे लिए जब घर ढुंढा जा रहा था तो भी मेरी मम्मी सयुंक्त परिवार को पहली प्राथमिकता दे रहीं थीं... जहाँ परिवार में कोई बड़ा हो... देवर हो.. ननद हो... और सौभाग्य से मुझे ऐसा ही परिवार मिला..। शादी के बाद से लेकर आज अठारह सालों तक भी मैं सयुंक्त परिवार में ही रहतीं हूँ...। बड़े जेठ.. सास - ससुर... मेरा परिवार.. सब एक ही घर में...। त्यौहार पर ननद का आना..छोटे देवर का आना... मिलकर त्यौहार मनाना... एक अलग ही आंनद मिलता हैं..।
परिवार के महत्व को समझें... और अपने बड़े बुजुर्गों का सम्मान करें... ।
Pratikhya Priyadarshini
25-Sep-2022 12:49 AM
Bahut khoob 💐👍
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Raziya bano
23-Sep-2022 07:37 PM
Shaandar
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आँचल सोनी 'हिया'
23-Sep-2022 11:36 AM
Bahut khoob 💐👍
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